ज्योतिष में ग्रहों और राशियों को अनेक प्रकार के बल प्राप्त हैं. इन बलों के आधार पर ग्रहों एवं राशियों की स्थिति एवं उसके अच्छे एवं बुरे प्रभावों को जाना जा सकता है. वैदिक ज्योतिष में ग्रहों और राशियों के बलों को निम्न प्रकार से बांटा गया है जो इस प्रकार हैं स्थान बल, दिग्बल, काल बल, नैसर्गिक बल, चेष्टा बल और दृगबल, चर बल, स्थिर बल और दृष्टि बल हैं

चर बल क्या है | Char Bal

ज्योतिष में राशियों के बल को मुख्य आधार माना जाता है. ज्योतिष में तीनों वर्गों की राशियों के लिए कुछ अंक निर्धारित किए गए हैं. जैसे चर राशियाँ को 20 षष्टियाँश अंक मिलेगें, स्थिर राशियों को 40 षष्टियाँश अंक मिलेगें, द्वि-स्वभाव राशियों को 60 षष्टियाँश अंक मिलेगें. इन अंक बल के आधार पर द्वि-स्वभाव राशियों को सबसे अधिक अंक मिलते हैं. इस प्रकार यह राशियाँ सबसे अधिक बली हो जाती हैं.

स्थिर बल क्या है | Sthir Bal

बल में एक अन्य बल स्थिर बल कहलाता है. इस बल के लिए राशियों में बैठे ग्रह को देखा जाता है. जिस राशि में कोई ग्रह स्थित है तो उस राशि को 10 अंक प्राप्त होते हैं. यदि किसी राशि में दो ग्रह बैठे हैं तब उस राशि को 20 अंक प्राप्त हो जाएंगें. जिस राशि में कोई ग्रह नहीं है उस राशि को शून्य अंक प्राप्त होगा. जैसे चर दशा के पाठ दो की उदाहरण कुण्डली में कुम्भ राशि में पाँच ग्रह हैं तो कुम्भ राशि को 50 अंक प्राप्त होगें और जिन राशियों में कोई ग्रह नहीं है उनमें बल कम होता है.

दृगबल | Drig Bal

जिन दृष्ट ग्रहों के ऊपर शुभ ग्रहों की दृष्टि पड़ रही हो, तो उक्त ग्रह शुभ ग्रह दृष्टि के बल को पाकर दृगबली होते हैं. ग्रहों के एक अन्य बल दृष्टि बल कहलाता है. दृष्टि बल में ग्रहों की दृष्टियों के आधार पर बल की गणना की जाती है. ग्रहों का बल जानने के लिए जिन मुख्य बलों से विचार किया जाता है उनमें से एक है दृग बल भी है. ग्रह की दृष्टि किस प्रकार से ग्रह विशेष के लिए कैसी ही यह इन्हीं बलों के अधार पर किया जाता है.

ग्रह यदि किसी विशेष ग्रह को पूर्ण या शुभ दृष्टि से देखता है तो यह जातक के लिए शुभ स्थिति कही जाती है इसके विपरीत जब ग्रह की दृष्टि अशुभ होती है तो जातक को कई प्रकार की परेशानी और नुकसान का सामना करना पड़ता है. दृग बल ऐसा बल है जो ग्रहों को एक दूसरे की दृष्टि से प्राप्त होता है. दृष्टिबल का आंकलन करते समय यह देखा जाता है कि गोचर में ग्रह किसी ग्रह विशेष को कितने समय तक किस डिग्री से देख रहा है. दृष्टिबल में ग्रहों का बल डिग्री से देखा जाता है यह महत्वपूर्ण होता है.

स्थान बल | Sthan Bal

स्थान बल के अंतर्गत ग्रह स्वग्रह, उच्च ग्रह, मित्र ग्रह और मूल त्रिकोण का होता है. जैसे सूर्य, चंद्रमा सम राशियों जैसे मेष, सिंह, वृष, कर्क राशि में स्थित होने पर स्थान बली होते हैं. इन के साथ बैठकर ग्रह बलवान हो जाते हैं.

काल बल | Kaal Bal

इस बल के अनुसार व्यक्ति का जन्म दिन के किस समय हुआ है जै से यदि किसी व्यक्ति का जन्म दिन के समय हुआ है तो तब सूर्य, और शुक्र ग्रह कालबली माने जाएंगे. और यदि रात्री में हुआ है तो चंद्रमा, शनि और मंगल ग्रहों को काल बली कहा जाएगा. गुरू ओर बुध सदैव बली माने जाते हैं.

नैसर्गिक बल | Naisargik Bal

नैसर्गिक बल के अन्तर्गत विभिन्न ग्रहों की स्थिति पर तो इस बल के अन्तर्गत क्रमागत रूप से सबसे पहले सूर्य आते हैं फिर चन्द्रमा, शुक्र, बृहस्पति, बुध, मंगल और सबसे अंत में शनि ग्रह आता है. इस बल के अन्तर्गत इन्हीं सात ग्रहों का विचार किया जाता है. नैसर्गिक बल के अनुसार एक ग्रह अन्य ग्रह से अधिक बली होता है उदाहरण स्वरुप शुक्र से चंद्र अधिक बली होगा और चंद्रमा से सूर्य ग्रह अधिक बली माना जाता है.

चेष्टा बल | Cheshta Bal

किसी ग्रह को सूर्य की परिक्रमा करने से जो बल प्राप्त होता है. इस प्रकार जो बल प्राप्त होता है. उसे चेष्टा बल कहते है.मकर से मिथुन राशि तक किसी भी राशि में रहने पर सूर्य तथा चंद्रमा चेष्टा बली होते हैं. इसी प्रकार  मंगल, बुध, गुरू, शुक्र, शनि यह ग्रह चंद्रमा के साथ होने पर चेष्टा बली माने जाते हैं.