पुंसवन संस्कार - Punsavan Sanskar

गर्भाधान संस्कार संपूर्ण होने के बाद गर्भ में मौजूद शिशु के मानसिक विकास हेतु और स्वस्थ बच्चे के जन्म के लिए किया जाने वाला दूसरा संस्कार पुंसवन संस्कार होता है. यह संस्कार गर्भाधान के दूसरे या तीसरे महीने में किया जाता है. इस के द्वारा गर्भवती स्त्री को शुभ वातावरण एवं संस्कारों भी मिलते हैं. यह जीव को विकास एवं शुभता देने में सहयोगात्मक है. इसका उद्देश्य शक्तिसंपन्न और स्वस्थ हष्ट पुष्ट संतान को जन्म देना है.

पुंसवन संस्कार

पुंसवन संस्कार दूसरा संस्कार होता है, हिन्दू धर्म में संस्कारों का बहुत महत्व रहा है. ये संस्कार ही मनुष्य के जीवन जीने की दशा को गति देते हैं. विश्व के निर्माण एवं मनुष्य कल्याण में इन संस्कारों की अहम भूमिका रही है. पंच भूतों से निर्मित हमारा शरीर इन संस्कारों से जुड़ते-जुड़ते एक सफल एवं सकारात्मक जीवन जीने की प्रेरणा पाता है. ये सभी संस्कार संतान के गर्भ में विकसित होने की प्रक्रिया में उसके मानसिक और बौद्धिक विकास की उन्नति में ये संस्कार गहरी नींव डालते जाते हैं.

गर्भ धारण करने के बाद गर्भ की रक्षा के लिये विष्णु की पूजा की जाती है. यह पूजा श्रवण, रोहणी, पुष्य़ नक्षत्र में से किसी एक में की जा सकती है. नक्षत्र के अतिरिक्त शुभ दिन अर्थात गुरुवार, सोमवार, शुक्रवार आदि का प्रयोग करना शुभ रहता है. मुख्य रुप से यह पूजा गर्भाधान के दिन से लेकर आठवें मास के मध्य की अवधि में करना शुभ रहता है. इसके लिये स्थिर व शुभ लग्न का चुनाव किया जाता है. संस्कार के समय लग्न से आठवें घर पर कोई पाप प्रभाव न होना इस पूजा के शुभ प्रभाव को बढ़ाता है.

औषधी निर्माण महत्व

इस संस्कार को करने में औषिधि निर्माण भी किया जाता है. इसमें लिए वटवृक्ष की जटा का नरम भाग, गिलोय, पीपल की ताजी पत्तियों को लेकर इन्हें पीस कर इनका एकदम पतला घोल तैयार कर लिया जाता है. इनके अतिरिक्त भी कुछ अन्य औषधी का उपयोग भी किया जाता है. चावल इत्यादि की खीर तैयार करके योग्य ब्राहमण द्वारा पुंसवन संस्कार के विशेष पूजा संपन्न की जाती है, तैयार औषधि को गर्भवती स्त्री को दिया जाता है. औषधि की कुछ बूंदे गर्भिणी स्त्री की नासिका में डाला जाता है. यदि नाक में नही डाल पाएं तो इस औषधि की सुगंध को ग्रहण किया जाता है. इसकी सुंगध अपने भीतर लेने का विधन होता है. वेद मन्त्रों के साथ इस उद्देश्य की पूर्ति में संपन्न होती जाती है. औषधी को सूँघने अथवा ग्रहण करने से गर्भ में पल रहे शिशु में श्रेष्ठ संस्कारों का आगमन होता है.

पुंसवन संस्कार के लिये शुभ मुहूर्त Auspicious Muhurat for Punsavan Sanskar

शुभ समय में किया गया कार्य अपने अंत को शुभता देने वाला होता है. यह व्यक्ति की सफलता और उसके जीवन को सुखमय बनाने में बहुत सहायक भी होते हैं. इसी को ध्यान में रखते हुए संस्कार आयोजन के लिए भी एक शुभ समय की आवश्यकता पर विचार किया गया है. पुंसवन संस्कार को करने के लिए शुभ समय, वार नक्षत्र इत्यादि को भी देखा जा सकता है.

गर्भधारण के दूसरे या तीसरे माह में पुंसवन संस्कार (Punsavan Sanskar) संपन्न किया जाता है. इस संस्कार को मूल, पुनर्वसु, मृगशिरा, श्रवण, हस्त, पुष्य इत्यादि नक्षत्रों में करना शुभ रहता है. इसके लिये पुरुष वारों को प्रयोग किया जाता है अर्थात रविवार, मंगलवार, गुरुवार इत्यादि. संस्कार कार्य के लिये शुभ तिथियों में नन्दा व भद्रा को लिया जाता है.

चन्द्र बल प्राप्त करने के लिये शुक्ल पक्ष व शुभ ग्रहों का केन्द्र व त्रिकोण में होना संस्कार कार्य की शुभता में वृद्धि करता है. पुंसवन संस्कार (Punsavan Sanskar) को कर लेने के बाद प्रसव तक की अवधि में किये जाने वाले अन्य संस्कारों में शुभ प्रभाव बना रहता है. इस अवधि के सभी संस्कारों में यह संस्कार सबसे अधिक महत्व रखता है. यहीं बच्चे की नींव को मजबूती देता है.

वर्जित समय मुहूर्त Inauspicious Time for Punsavan Sanskar

निम्नलिखित योग होने पर पुंसवन संस्कार (Punsavan Sanskar) को नहीं करना चाहिए

व्याघात (Vyaghata Yoga)

परिध ( Paridh Yoga)

वज्र (Vajra Yoga)

व्यतिपात (Vyatipata Yoga)

वैधृति (Vaidhriti Yoga)

गंड (Ganda yoga)

अतिगंड (atiganda yoga)

शूल (Shool Yoga)

विषकुम्भ (Vishkambha yoga)

ये 9 योग पुंसवन संस्कार, कर्णवेध, व्रतबंध और विवाह के लिये वर्जित है. इन योगों के नाम के अनुसार ही इनसे मिलने वाले फल भी है. ये सभी योग पुंसवन संस्कार की शुभता में कमी करने के साथ-साथ माता व शिशु के स्वास्थ्य के लिए अच्छे नहीं माने जाते हैं.

पुंसवन संस्कार क्यों किया जाता है

शिशु का शारीरिक और मानसिक विकास शुभ प्रभावों में हों इसके लिए ये संस्कार मदद करते हैं. पुंसवन संस्कार गर्भाधान के दूसरे या तीसरे महीने में किया जाने का विधान बताया गया है. इस संस्कार से गर्भ में आए हुए बच्चे का अभी लिंग तय नहीं हो पाता है. बच्चे के अंग विकास एवं मानसिक विकास का आरंभ तीसरे माह के बाद से आरंभ हो जाता है, इस लिए इस समय के दौरान ही इस संस्कार को कर दिया जाता है.

गर्भ का उत्तम विकास ही कुल के लिए शुभ फलदायक होता है. शिशु के शारीरिक और बौद्धिक विकास के साथ साथ माता के भी सुखी गर्भ के लिए इस संस्कार को किया जाना उत्तम होता है. आज के समय में हम सभी लोग इन महत्वपूर्ण बातों से दूर होते जा रहे हैं. ऎसे में ये स्थिति चिंता को ही दिखाती है. पूर्व समय में सभी कार्यों के पीछे कुछ न कुछ महत्वपूर्ण तर्क समायोजित थे और वहीं हमारे जीवन को आधार भी मिलता था. यदि आज के स्मय में भी हम इन सभी बातों को समझें और इसके अनुरुप आचरण करें तो हमें जीवन में सहज ही आगे बढ़ने की प्रगत्ति प्राप्त हो सकेगी.

तीसरे माह में संस्कार कार्य करने का कारण

सामान्य रुप से पुंसवन संस्कार (Punsavan Sanskar) दूसरे व तीसरे माह में किया जा सकता है. परन्तु इसे तीसरे माह में करना विशेष रुप से शुभ रहता है. इसका कारण यह है कि इस माह में शिशु का लिंग निर्धारण होता है. इस माह में यह संस्कार करने से गर्भस्थ शिशु के अंगों का विकास भी सही से होता है. एक स्वस्थ संतान की चाह सभी दंपति की चाह होती है ऎसे में इन संस्कारों का योगदान उसमें सहयोग देने वाला होता है.

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