शनि की विशेषताएं (The Qualities of Saturn in Vedic Astrology

शास्त्रों ने व्यक्ति को सदैव "कर्म: प्रधान बनने की प्रेरणा दी है. ज्योतिष भी भाग्य से अधिक कर्म पर विश्वास करता है. श्री कृ्ष्ण की गीता से लेकर सभी ग्रंथों ने व्यक्ति में कर्म प्रधान प्रवृ्ति को बढावा दिया है. और ज्योतिष शास्त्र में नौ ग्रहों में से शनि ग्रह को कर्म का कारक ग्रह कहा गया है. (Saturn is the Karak for Karma)

काल पुरुष की कुण्डली में शनि को दशम अर्थात आजिविका व एकादश अर्थात लाभ भाव का स्वामित्व दिया गया है (Saturn is the lord of the tenth and eleventh house). इन दोनों भावों का अधिकार क्षेत्र शनि को देने का औचित्य भी कर्म-लाभ का संबन्ध व्यक्ति को समझाना है.

शनि की साढेसाती को समझने से पहले शनि को समझना उपयुक्त रहेगा.

शनि के नाम (The names of Saturn)

शनि को अंग्रेजी में सेटर्न, अरबी में इसे जौहल, फारसी में इसे केदवान, संस्कृ्त में असित, मन्द शनैश्चर, सूर्यपुत्र, अर्कपुत्र, छायासून, सौरि, तरणितनय, पंगु, नीलकाय, क्रूर, कृ्शांग, कपिलाक्ष, यमाग्राज, भास्करि, आर्कि, यम, नील, थावर आदि नामों से जाना जाता है.

शनि के कारक तत्व (Karaks of Saturn)

शनि अवरोध, कारावास, आय, कष्ट, लम्बी अवधि के रोग, विरोध, दु:ख, मृ्त्यु, सेवक, चांडाल, विकलांगता, उदर, आयु, प्रेत, आग, आचरण, असत्य बोलना, वायु, वृ्द्ध, स्नायु, अत्यधिक क्रोध, अत्यधिक श्रम, मलिनता, घर, अशुद्ध वस्त्र, अपवित्र विचार, दुष्टों से मित्रता, पाप, क्रूरता, भश्म, काला रंग, अन्न, लंगडापन, निर्वाह के साधन, कृ्षिकार्यो का कारक शनि है.

शनि को तामसिक स्वभाव, रात्रिकालिन नौकरी, खुदाई करना, खदान का कार्य, राजमिस्त्री, गाडी का निर्माण, मोमबती बनाना, कोयले का व्यापार, कानून, मिट्टी का तेल, बीमा कंपनी, उच्च न्यायालय, न्यायाधीश, विदेशी सूचनाएं, उदासीनता, निराशा, अस्थियों का टूटना, लगवा, क्षयरोग, शारीरिक कंपन आदि का कारक कहा गया है.

शनि को घाटा, दिवालियापन, बंधन, मुकदमा फांसी, शत्रुता, राजभय, त्यागपत्र, बाजुओं में पीडा, तस्करी, जासूसी आदि के कार्य भी शनि के प्रभाव से ही आते है. निष्काशन, गरीबी, दुर्भाग्य शनि के फलस्वरुप होता है. शनि को आकार में वृ्हस्पति से कुछ छोटा कहा गया है. वह पश्चिम दिशा के स्वामी माने गये है.

शनि का रुप

(Structure of Saturn) शनि के सख्त, सूखे बाल, लम्बे बडे अंग, शरीर का रंग काला, प्रचंड रुप है. क्रूर द्रष्टि, लम्बी देहयुक्त, निर्दयी, बुद्धिहीन, पीले नेत्र का कहा गया है. यह व्यक्ति के नैतिक पतन का कारक है. इससे हताशा, निराशा और जुए की प्रवृ्ति व्यक्ति में आती है.

शनि के स्थान

(Placement of Saturn) इसका वायु, पर्वत, और पहाडियों, जंगली इलाकों और गन्दे स्थानों पर इसका अधिकार है. दाह-संस्कार गृ्हों, कब्रिस्त्तानों, जेलों और वृ्द्ध व्यक्तियों का प्रतीक ग्रह है. शनि के अन्य स्थानों में घाटियां, गुफाएं, मरुप्रदेश, पर्वत, ध्वस्त आवास, कोयला खान, मलिन दुर्घन्धयुक्त स्थान, ऊसर बंजर जमीन आदि शनि के क्षेत्रों में आती है.

वस्तुओं में यह काले चने, भांग, जौ और तेलों में सरसों के तेल का प्रतिनिधित्व करता है.

शनि को शरीर के जोडों, पैर व घुटनों का प्रतीक है. शनि के पीडित होने पर दर्द, दांत का दर्द, सांस की बिमारी, हिस्टीरिया, मिरगी आदि नामक रोग होते है.

शनि के गुण

(Qualities of Saturn) शनि चेतना के कारक ग्रह है. यह व्यक्ति के व्यक्तित्व में अहंम भाव का प्रतिनिधित्व करता है. व्यक्ति में व्यक्तिगत जीवन के विचार, इच्छा, कार्यो में संतुलन का भी प्रतीक है. शनि विचार और भावों की समानता का सूचक है. स्वतन्त्रता, मननशीलता, कार्यपरायण्ता, आत्यसंयम, धैर्य, दृढता, गंभीरता, चारित्रशुद्धि, सतर्कता, विचारशीलता और कार्यक्षमता का प्रतीक है.

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