शनि चक्र से भविष्य का विचार (Evaluation of Fortune according to Saturn Chakra)

प्रत्येक व्यक्ति अपने भविष्य के विषय में कुछ न कुछ जानना चाहता है. " कल क्या होगा" इसकी जिज्ञासा सभी को रहती ही है. कुछ इसे जानने का प्रयास करते है तो कुछ सिर्फ सोच के रह जाते है. भविष्य में होने वाली घटनाओं को जानने के लिये ज्योतिष शास्त्र में अनेक विधियां प्रचलित है.

ज्योतिष शास्त्र में भविष्य कथन की अनेक विधियां प्रचलित है. इसलिये यह माना जाता है कि सदैव फलित के लिये एक से अधिक विधियों का प्रयोग करना चाहिए. इससे किये गये फलित में त्रुटियां होने की संभावना कम रहती है. तथा कही गई घटनाओं में भी निश्चितता आती है. फलित की अनेक विधियों में से एक अन्य विधि है जिसे शनि चक्र (Shani Chakra) के नाम से जाना जाता है. आईये देखे की शनि चक्र (Shani Chakra) किस प्रकार से व्यक्ति के भविष्य का फलित करता है.

शनि चक्र का आधार :- (Basis of Saturn Chakra)

शनि चक्र (Saturn Chakra) का आधार जन्म कुंडली में शनि जिस नक्षत्र में स्थित होता है. उस नक्षत्र पर यह चक्र आधारित है. इस चक्र में शनि जिस नक्षत्र में स्थित होता है. उस नक्षत्र की स्थापना मानवाकृ्ति के सिर स्थान पर रख इस चक्र की स्थापना की जाती है. शनि चक्र में जन्म नक्षत्र शरीर के जिस अंग पर स्थापित होता है. उसके अनुसार व्यक्ति का भविष्य होने की संभावनाएं बनती है.

शनि चक्र का निर्माण (Formation of the Saturn Chakra)

शनि चक्र (Shani Chakra) का निर्माण के लिये सबसे पहले यह देखा जाता है कि शनि जन्म कुण्डली में जिस नक्षत्र में स्थित हों, उसकी स्थापना मानवकृ्ति के सिर स्थान में शनि नक्षत्र स्थापना के साथ ही शनि चक्र (Saturn Chakra) का निर्माण कार्य आरम्भ होता है. इसके बाद क्रम से आने वाले अन्य नक्षत्रों को मानवाकृ्ति के शरीर के अन्य अंगों पर स्थापित किया जाता है.

शनि चक्र में अन्य नक्षत्रों की स्थापना (Others Nakshatra Placed in Saturn Chakra)

सिर स्थान पर शनि का नक्षत्र स्थापित करने के बाद इसके बाद आने वाले तीन नक्षत्रों को मुख स्थान पर स्थापित किया जाता है. इसके बाद के दो नक्षत्रों को नाभि स्थान पर स्थापित किया जाता है. नाभि स्थान पर नक्षत्रों की स्थापना करने के बाद नेत्र स्थानों पर इसके बाद के दो नक्षत्र रखे जाते है.

नेत्रों के बाद ह्रदय स्थान पर इसी क्रम से आने वाले पांच नक्षत्र स्थापित किये जाते है. इसके बाद बांये हाथ पर चार, बांये पैर पर तीन, दायें पैर पर तीन व दायें हाथ पर चार नक्षत्र स्थापित किये जाते है. इस प्रकार शनि चक्र में नक्षत्र कि स्थापना का कार्य पूर्ण होता है.

शनि चक्र के फल :- (Results For Saturn Chakra)

शनि चक्र (Shani Chakra) में व्यक्ति का जन्म नक्षत्र शरीर के जिस अंग पर स्थापित होता है. उसके अनुसार व्यक्ति को फल मिलने की संभावना बनती है. जैसे:-

1. सिर स्थान पर जन्म नक्षत्र के फल:- (Results of Placement of Janm Nakshatra On the Head Point)
जब व्यक्ति का जन्म नक्षत्र सिर स्थान पर आयें तथा शनि जन्म कुण्डली में मार्गी होकर स्थित हों तो व्यक्ति के रोगों में वृ्द्धि होती है. परन्तु जब शनि जन्म कुण्डली में वक्री (Vakri Shani in Birth Chart) होकर स्थित हों, तो व्यक्ति के लाभों में वृ्द्धि के योग बनते है.

2. मुख स्थान पर जन्म नक्षत्र के फल:- (Results of Placement of Janm Nakshatra On the Mouth)
शनि चक्र (Shani Chakra) में अगर किसी व्यक्ति का जन्म नक्षत्र मुख स्थान पर आता है, तथा शनि की स्थिति कुण्डली में मार्गी हों, तो व्यक्ति के लाभों में वृ्द्धि के योग बनते है. पर अगर शनि वक्री स्थिति में हों तो ऎसा व्यक्ति को अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने में सहयोग प्राप्त होता है. वह व्यक्ति अपने प्रतियोगियों पर भी अपना प्रभाव बनाये रखने में सफल होता है.

3. नाभि स्थान पर जन्म नक्षत्र के फल:- (Results of Placement of Janm Nakshatra on the navel)
शनि चक्र (Saturn Chakra) में जन्म नक्षत्र का नाभि स्थान पर स्थापित होना व्यक्ति को जीवन में हानि की संभावनाओं में वृ्द्धि करता है. ये फल व्यक्ति को शनि के मार्गी होने पर ही प्राप्त होते है. पर जब शनि जन्म कुण्डली में शनि वक्री स्थिति में हों, तो व्यक्ति को शारीरिक पीडा प्राप्त होने की संभावनाएं बनती है.

4. नेत्र स्थान पर जन्म नक्षत्र के फल :- (Results of Placement of Janm Nakshatra On the Eyes)
जन्म नक्षत्र जब शनि चक्र (Shani Chakra) में नेत्र स्थानों पर स्थित हों, तथा शनि भी कुण्डली में मार्गी होकर स्थित होने पर व्यक्ति के लाभों में वृ्द्धि की संभावनाएं बनती है. तथा शनि के वक्री होने पर बन्धन योग बनता है. इसलिये इस अवस्था में व्यक्ति को कानूनी नियमों का सख्ती से पालन करना चाहिए.

5. ह्रदय स्थान पर जन्म नक्षत्र के फल:- (Results of Placement of Janm Nakshatra On the Heart )

शनि चक्र (Saturn Chakra) में जन्म नक्षत्र की स्थापना ह्रदय स्थान पर हों, तथा शनि कुण्डली में मार्गी होकर स्थित हों, तो व्यक्ति के सुखों में वृ्द्धि होती है. वक्री होने पर इसी प्रकार के फल प्राप्त होते है. अर्थात इस योग में शनि मार्गी हो या वक्री हों दोनों ही स्थितियों में उसके सुखों में वृ्द्धि होती है.

6. बांया हाथ स्थान पर जन्म नक्षत्र के फल:- (Results of Placement of Janm Nakshatra On the Left Hand)
जन्म नक्षत्र की स्थिति शनि चक्र (Shani Chakra) में बांये हाथ पर आयें तथा शनि भी कुण्डली में मार्गी हों, तो व्यक्ति के लिये बन्धन योग बनता है. तथा जब शनि वक्री हों तो व्यक्ति के लाभों में वृ्द्धि के योग बनते है.

7. बांया पैर स्थान पर जन्म नक्षत्र के फल:- (Results of Placement of Janm Nakshatra On the Left Foot)
शनि चक्र (Saturn Chakra) में जन्म नक्षत्र की स्थिति बांये पैर पर आयें तथा कुण्डली में शनि मार्गी होकर स्थित हों तो व्यक्ति की शारीरिक पीडा की संभावनाएं बनती है. परन्तु जब शनि वक्री होकर स्थित हों तो उसे धन हानि हो सकती है.

8. दायां पैर स्थान पर जन्म नक्षत्र के फल:- ( Results of Placement of Janm Nakshatra On the Right Foot)
जन्म नक्षत्र जब शनि चक्र (Shani Chakra) में दांये हाथ पर स्थापित हो व शनि कुण्डली में मार्गी रुप में स्थित हों तो व्यक्ति को यात्राओं से लाभ प्राप्ति के योग बनते है. शनि की स्थिति वक्री होने पर व्यक्ति के लाभौं में वृ्द्धि की संभावनाएं बनती है.

9. बांया हाथ स्थान पर जन्म नक्षत्र के फल:- (Results of Placement of Janm Nakshatra On the Left Hand)
शनि चक्र (Saturn Chakra) में जन्म नक्षत्र बांये हाथ पर स्थापित हों तथा शनि भी मार्गी स्थिति में हों, तो व्यक्ति के लाभ वृ्द्धि के योग बनते है. शनि के वक्री होने पर धन हानि की संभावनाएं बनती है.

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